न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Updated Tue, 29 Sep 2020 07:20 PM IST
प्रतीकात्मक तस्वीर
– फोटो : एएनआई
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केंद्रीय गृह मंत्रालय ने मंगलवार को कहा कि एमनेस्टी इंटरनेशनल का रुख और उसके बयान दुर्भाग्यपूर्ण, अतिरंजित और सच्चाई से दूर हैं। एमनेस्टी इंटरनेशनल को विदेशी योगदान कानून (एफसीआरए) के तहत 20 साल पहले 19 दिसंबर 2000 को केवल एक बार अनुमति दी गई थी।
चूंकि एमनेस्टी इंटरनेशनल ने एफसीआरए की अनुमति मिलने से इनकार किया है ऐसे में यह इस तरह की अनुमति पाने के योग्य नहीं है। एफसीआरए के नियामकों दरकिनार करने के लिए एमनेस्टी यूके ने भारत में पंजीकृत चार कंपनियों को एफडीआई बताकर बड़ी मात्रा में धनराशि दी।
गृह मंत्रालय ने कहा कि एमनेस्टी भारत में अपने मानवीय कार्य जारी रखने के लिए स्वतंत्र है। लेकिन, भारत ऐसे संगठनों को घरेलू राजनीतिक बहसों में दखल देने की अनुमति नहीं देता है जिन्हें विदेशी मदद मिल रही है। यह कानून सभी के लिए बराबर है और एमनेस्टी पर भी लागू होता है।
इससे पहले एमनेस्टी ने एक बयान में कहा था कि भारत सरकार द्वारा एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया के बैंक खातों की पूरी तरह से फ्रीज कर दिया गया, जिसकी जानकारी 10 सितंबर को मिली, संगठन द्वारा किए जा रहे सभी काम बिल्कुल बंद हो गए हैं।
संगठन ने कहा कि वे भारत में कर्मचारियों को निकालने और अपने सभी अभियान और अनुसंधान कार्यों को रोकने के लिए मजबूर हो गए हैं। संगठन का कहना है कि भारत सरकार द्वारा निराधार और प्रेरित आरोपों पर मानवाधिकार संगठनों के पीछे पड़ने का यह बिल्कुल नया मामला है।
एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया पर ये हैं आरोप
सरकार का कहना है कि प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) संस्था के खिलाफ विदेशी फंडिंग हासिल करने में अनियमितताओं के आरोपों की जांच कर रहा है। गृह मंत्रालय के मुताबिक संस्था ने भारत में एफडीआई (विदेशी प्रत्यक्ष निवेश) के जरिए पैसे मंगाए। इसकी गैर-लाभकारी संस्थाओं को अनुमति नहीं है। पिछले साल सीबीआई ने भी उनके खिलाफ केस दर्ज किया था।
सूत्रों का कहना है कि एमनेस्टी इंडिया को 2011-12 में एमनेस्टी यूके से लगभग 1.69 करोड़ रुपये प्राप्त करने की सरकार की अनुमति मिली थी। लेकिन 2013 के बाद से उसे इसकी इजाजत नहीं दी गई। ईडी ने 2017 में संस्था के अकाउंट फ्रीज कर दिए थे, जिसके बाद एमनेस्टी सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और उसे कुछ राहत मिली। लेकिन उसका अकाउंट सील था।